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लेखनी प्रतियोगिता -30-Aug-2022 जादू की झप्पी


                  शीर्षक:- जादू की झप्पी
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              मानवी के  पापा देव मुम्बई मे औटो रिक्शा चलाकर  अपने छोटे से परिवार का गुजारा करते थे। उनके सन्तान के नाम पर दो बेटियाँ थी। जब उनके घर पहली बेटी का जन्म हुआ था तब घर के सभी लोग नाखुश थे केवल  मानवी के मम्मी पापा ही खुश थे।

           देव ने अपनी मम्मी को परेशान देखकर पूछा," मम्मी आपको तो सबसे अधिक खुशी होंनी चाहिए कि हमारेत्रघर लक्ष्मी आई है।  और आपतो बहुत परेशान   नजर आरही हो। चलो उठो और खुशी से नाचो और गाओ। "

       " नहीं बेटा मुझे तो बेटा चाहिए था परन्तु बेटी के आने मेरा दिमाग ही खराब होगया । बेटी तो पराया धन होती है बेटौ से वंश आगे चलता है। मुझसे नाचने गाने के लिए मत बोलना।" देव की माँ उलाहना देती हुई बोली।

      देव ने ऐसे तैसे करके अपनी माँ को समझाकर सभी काम करवाये। अगली बार भी ऐसा हुआ   जब  एक और बेटी आगयी  तब देव की मम्मी का गुस्सा देव की पत्नी  सुनन्दा पर टूट पडा़। वह बेटियौ को जन्म देने का पूरा दोष अपनी बहू को देरही थी।।

      लेकिन देव तो समझता था कि इसमें उस बेचारी का क्या दोष है। उसने अपनी पत्नी को ऐसे तैसे समझा कर चुप कर दिया।

    देव अब अपनी बेटियौ को पढा़कर बडा़ अफसर बनाना चाहता था। वह अपनी दोनौ बेटियौ को जादू की झप्पी देकर उनको महनत करने की शिक्षा देता था।

      देव की बडी़  बेटी ने सी ए करने  लगी और वह अपनी कडी़ महनत  से जब  सी ए बनकर लौटी  एवं उसने पूरे देश में सीए की परीक्षा में टाप किया  तब देव ने  अपनी माँ को समझाया कि माँ यह वही बेटी है जिसके जन्म पर आप बहुत परेशान हुई थी। आज इस बेटी ने हम सबका नाम रोशन किया है। अब तो आप को भी विश्वास होगया होगा कि लड़किया किसी से कम नही होती है। 

      मानवी का चयन एक बहुत बडी़ कम्पनी मे होगया जब एक सम्मान समारोह में उससे पूछा गया तब उसने स्टेज पर अपने पापा व मम्मी को बुलाकर बताया यह सब इन दोनौ की महनत व जादू की झप्पी का परिणाम है कि मै इस मुकाम तक  पहु़ची हूँ।  मेरे पापा एक औटो चालक है जो मुझे हर रोज अपने औटौ से स्कूल व कालेज  छोड़कर आते थे और छोड़ने के बिद जादू की झप्पी देते थे।  तब मेरे साथ की लड़किया व लड़के मेरी हसी बनाते थे परन्तु मैने उनकी बातौ पर कभी गौर नही किया और आज मै इस मुकाम तक पहुँची हूँ।

       आज देव को स्टेज पर खडे़ होते हुए गर्व मह सूस हो रहा था। वह स्वयं को दुनिया का सबसे भागयशाली इन्सान समझ रहा था। उसे अपनी बेटी पर गर्व होरहा था।

     देव के लिए उसकी बेटिया ही सबसे बडा़ धन थी। उसने कभी उनको बेटी समझा ही नही वह उनको अपनी दोनौ बाजू समझता था।

      आज देव की माँ भी बहुत खुश थी उन्हौने मानवी की आरती उतारकर घर मे स्वागत किया था।

आज की प्रतियोगिता हेतु रचना।
नरेश शर्मा " पचौरी "
30/08/2022

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9 Comments

hema mohril

26-Mar-2025 05:16 AM

amazing

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Achha likha hai aapne 🌺💐

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Abhinav ji

31-Aug-2022 07:34 AM

Very nice👏

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